Wednesday, December 9, 2015

इंसान

किस भंवर में है उलझा यह संसार
चंद रोटी के टुकड़े और मकान
यही तो थी ज़रुरत उसकी
फिर क्यों बैल सा ढ़ो रहा है
यह भोझ इंसान
कांच के महल , अशर्फियों की खनक
मखमली बिछौने , यह चमक धमक
भूल गया वो अब मुस्कुराना
ना याद रहता उसे अब सांस भी लेना,
के गुम हो गयी अब उसकी शख्सियत
रह गया बस बनके एक मूरत
जाग कर भी ना आँखें खोलें
ऐसी हो गयी उसकी फितरत !

Wednesday, July 22, 2015

वक़्त नहीं

हर ख़ुशी है लोंगों के दामन में ,
पर एक हंसी के लिये वक़्त नहीं .
दिन रात दौड़ती दुनिया में ,
ज़िन्दगी के लिये ही वक़्त नहीं .


सारे नाम मोबाइल में हैं ,
पर दोस्ती के लिये वक़्त नहीं .
गैरों की क्या बात करें ,
जब अपनों के लिये ही वक़्त नहीं .
आखों में है नींद भरी ,
पर सोने का वक़्त नहीं .
दिल है ग़मो से भरा हुआ ,
पर रोने का भी वक़्त नहीं .
पैसों की दौड़ में ऐसे दौड़े,
की थकने का भी वक़्त नहीं .


तू ही बता ऐ ज़िन्दगी ,
इस ज़िन्दगी का क्या होगा,
की हर पल मरने वालों को ,
जीने के लिये भी वक़्त नहीं …….

Thursday, October 23, 2014

ज़िन्दगी क्यों हमे मिली है

ज़िन्दगी क्यों हमे मिली है , जीने के लिए या मरने क लिए मिली है।

चाहते है हम ज़िन्दगी से कुछ एसा,जो हमे मिल नहीं सकता,इसी वजह से हसना तो दूर ,रोने का भी समय नहीं मिलता। क्यों इसे हम समज नहीं पाते , बहुत ऐसे सवाल है, जिनके जवाब अभी बाकी है , और नए सवाल इसमें जुड़ते जाते है,


ज़िंदा रहे भी तो किसलिए , यहाँ तो जीने की भी वजह नहीं मिलती , मरना चाहे भी तो किसलिए, मरने की भी तो वजह नहीं मिलती, बस इसी तरह ज़िन्दगी की उलझने बढती जाती है, हम जीते है या मरते है ये सवाल बढ़ते जाते है।


जीवन एक अनंत धरातल

जीवन एक अनंत धरातल, हम है इसका एक छोटा तल कभी है अवतल कभी है उत्तल कभी अभिन्न इसी सा समतल जीवन एक अनंत धरातल

कभी बहुत आनंद समेटे कभी दर्द की आहट लेके आता जाता आज और कल जीवन एक अनंत धरातल

 जो बिक जाये दाम उसीका झूठा जो है नाम उसीका जो न बिका बेकार है यहाँ मिथ्या सब संसार है यहाँ

 क्या ये सूखे सूखे उपवन क्या ये बहती नदिया कल-कल जीवन एक अनंत धरातल जीवन एक अनंत धरातल